दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।। तदा एव काश्चन परीक्षाः समाप्ताः भवन्ति। साधु संत के तुम रखवारे।। असुर निकन्दन राम दुलारे।। जय जय जय https://shivchalisas.com